क्या आप जानते हैं, Digital Signature Kya Hai यह किस काम आता है, इसका उपयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है? आज के इस डिजिटल दौर में सब ऑनलाइन हो गया है। हर काम ऑनलाइन होने लगे है, चाहे कोई वेरिफिकेशन करना हो, कोई रजिस्ट्रेशन कराना हो या फिर दस्तावेज से जुड़ा कोई काम हो।
अब क्योकि दस्तावेज से जुड़े काम है, तो हस्ताक्षर (Signature) की भी आवश्यकता होगी। जब सभी काम डिजिटल हो रहे हैं तो सिग्नेचर भी डिजिटल ही करना होगा। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि आपको Digital Signature के बारे में जानकारी हो।
आपको पता हो कि Digital Signature क्या होता है, Digital Signature कैसे काम करता है, Digital Signature कैसे बनवाएं, Digital Signature बनवाने के लिए कौन-कौन से डॉक्यूमेंन्ट्स की आवश्यकता पड़ती है और यह सारी जानकारी आपको हमारे इस आर्टिकल से मिलेगी। साथ ही आपको Digital Signature बनाने का तरीका भी बताएंगे। तो आइए जानते है कि Digital Signature क्या होता है।
Digital Signature क्या है (What is Digital Signature in Hindi)
Digital Signature किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर का डिजिटल रूप है। Digital Signature को इल्क्ट्रॉनिक सिग्नेचर भी कहा जाता है। डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट एक ‘USB टोकन’ के रूप में होता है, जो डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट कंट्रोलर ऑफ सर्टिफाइंग अथॉरिटीज (CCA) द्वारा स्वीकृत होता है।
डिजिटल सिग्नेचर एक प्रकार की गणितीय योजना है जो कि Advanced Cryptography technology पर आधारित है। यह डिजिटल डॉक्यूमेंट या मैसेज की प्रमाणिकता और स्वीकार्यता को प्रदर्शित करता है। Digital Signature हाथों द्वारा किये गए सिग्नेचर के समान ही होते हैं, लेकिन उनकी तुलना में ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा सुरक्षित होते हैं।
डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट एक इलेक्ट्रॉनिक “पासवर्ड” है जो Digital Signature Certificate (DSC) ऑनलाइन ट्रांजेक्शन में हो रहे इन्फर्मेशन एक्सचेंज को हाई लेवल सक्योरिटी प्रोवाइड करता है। Digital Signature Certificate में यूजर की निजी जानकारी (आपका नाम, पता, जन्म तिथि, आधार कार्ड व पैन कार्ड से सम्बन्धित जानकारी, ईमेल एड्रेस, पिन कोड, राज्य का नाम, देश का नाम, डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट जारी की जाने वाली दिनांक और प्रमाणित प्राधिकारी का नाम) शामिल होती है।
Digital Signature इस बात का प्रमाण होता है कि डॉक्यूमेंट Verified है और डॉक्यूमेंट के बनने से लेकर अभी तक इसके साथ कोई छेड़छाड़ नही की गई है। Digital Signature का उपयोग ईमेल्स, बिज़नेस, Software distribution, Tax filling, Tenders आदि कार्यों में अधिक होता है।
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डिजिटल सिग्नेचर का इतिहास (History of Digital Signature in Hindi)
डिजिटल सिग्नेचर में समय के साथ-साथ इसमें कई बदलाव हुए और पहले की तुलना में यह अब तक काफी अपग्रेड हो चुका है। 1976 में पहली बार व्हिटफील्ड़ डिफी और मार्टिन हेलमेन ने डिजिटल सिग्नेचर की योजना पर विचार किया। इसके बाद 1977 में रोनाल्ड रिवेस्ट, आदि शमीर और लेन एडेलमैन ने RSA एल्गोरिथम का अविष्कार किया। जिसके उपयोग से एक प्रकार के आदिम डिजिटल सिग्नेचर का उत्पादन किया जा सकता है।
1988 में Lotus नोट्स 1.0 RSA एल्गोरिथम का उपयोग कर डिजिटल सिग्नेचर को पेश करने वाला पहला व्यापक रूप से विपणन सॉफ्टवेयर पैकेज बन गया। 1999 डिजिटल हस्ताक्षर को पीडीएफ प्रारूप में दस्तावेजों में एम्बेड करने की क्षमता जोड़ी गई।
समय के साथ Digital Signature की उपयोगिता और महत्व को देखते हुए लगभग सभी तरक्की पसंद देशों ने Digital Signature की उपयोगिता और महत्व को देखते हुए इसे कानूनी मान्यता दे दी गयी, इन देशों में भारत भी शामिल है। भारत मे 1 नवम्बर 2000 को Section 3 Information Technology (IT) Act, 2000 को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया, इसे 2008 में update किया गया। 2000 ESIGN अधिनियम के अनुसार डिजिटल सिग्नेचर को कानूनी रूप से बाध्यकारी कर दिया गया और यह पूरे भारत मे legal हो गया।
सन 2002 में SIGNiX की स्थापना हुई और क्लाउड पैर आधारित डिजिटल सिग्नेचर सॉफ्टवेयर का सबसे अधिक उपयोग किया जाने लगा। 2008 में अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के लिए पीडीएफ फाइल फॉर्मेट ISO के रूप में मानकीकरण (ISO) के लिए एक खुला मानक बन गया। इस तरह से वर्तमान में डिजिटल सिग्नेचर पूर्ण रूप से स्थापित है।
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डिजिटल सिग्नेचर कैसे काम करता है ? (How Digital Signature Works)
Digital Signature एक विशेष तरह के प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते हैं। यह प्रोटोकॉल Public Key Infrastructure (PKI) कहलाता हैं। Public Key Infrastructure (PKI) का उपयोग करके कोई व्यक्ति या संस्था इंटरनेट द्वारा सुरक्षित रूप से डेटा का आदान-प्रदान कर सकता है। इसमें Private Key और Public Key दो प्रकार की कुंजी का प्रयोग होता है, जो गणितीय रूप से जुड़े होते हैं। Digital Signature Public Key Cryptography की विधि पर काम करता है, इसलिए इसे Asymmetric Cryptography भी कहते है। आइए जानते है यह keys कैसे काम करती है।
निजी कुंजी (Private Key)
निजी कुंजी Digital signature की मुख्य Security है। यह Key मैसेज को Decrypt करने वाली होती है। इसे सीक्रेट रखा जाता है, इसलिए इसे सीक्रेट Private Key कहा जाता है। जब किसी डॉक्यूमेंट पर Digital Signature किया जाता है तो वह Electronic Sign इसी key के द्वारा Generate होता है।
इस प्रोसेस में mathematical algorithm के द्वारा डॉक्यूमेंट को मेच करने, details चेक करने जैसे कार्य जाते है। यह प्रक्रिया को hash कहलाती है। यदि सिग्नेचरकर्ता की निजी कुंजी (Private Key) किसी अन्य व्यक्ति के पास पहुंच जाये तो वह व्यक्ति धारक के नाम के झूठे डिजिटल सिग्नेचर बना कर उसका गलत उपयोग कर सकता है।
सार्वजनिक कुंजी (Public Key)
पहली Key मैसेज को Encrypt करने वाली होती है। इसे पब्लिक रखा जाता है, इसलिए इसे Public Key कहा जाता है। जब यह डॉक्यूमेंट प्राप्तकर्ता को मिलेगा तो वह डॉक्यूमेंट के साथ प्राप्त हुए Public Key का उपयोग कर इस डॉक्यूमेंट का सत्यापन कर सकता है। जब प्राप्तकर्ता public key का उपयोग करता है तो फिर से Hash code प्राप्तकर्ता की सार्वजनिक कुंजी के द्वारा Decrypt हो जाता है।
यदि हैश कोड प्राप्तकर्ता की Public Key के Decryption से Match हो जाता है तो इसका मतलब होता है कि डॉक्यूमेंट से कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी है और यह धारक द्वारा स्वीकार्य है। लेकिन अगर सार्वजनिक कुंजी से वह कोड नहीं मिलता है तो ऐसी स्तिथि में यह माना जाता है कि या तो उस दस्तावेज के साथ किसी ने छेड़छाड़ की है या फिर वह दस्तावेज किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भेजा गया है और उस डॉक्यूमेंट को नकली माना जाता है।
इस प्रकार Digital Signature डॉक्यूमेंट के Issuer की पहचान को Verify करता है कि यह डॉक्यूमेंट किस नाम के व्यक्ति द्वारा Sign किया गया है और साथ ही यह डिजिटल सिग्नेचर धारक की स्वीकार्यता दर्शाने का एक प्रमाण होता है जिसे धारक कभी भी झुठला नहीं सकता है। हर व्यक्ति की Private Key और Public key Unique होती है।
डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट की आवश्यकता क्यों होती है ?
यदि आप दस्तावेज से सम्बन्धित किसी कार्य को डिजिटल तरीके से करते है, तो आपको डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ती है। आजकल दस्तावेज से सम्बन्धित अधिकतर सरकारी काम भी डिजिटल रूप से ही करे जाते है। आइये जानते है, किन कार्यों को करने के लिए डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट की आवश्यक होता है।
- कॉन्ट्रेक्ट और एग्रीमेन्ट को ई-साइनिंग करने के लिए।
- इनकम टैक्स रिटर्न को ई-फाइल के लिए।
- GST रिटर्न फाइल करने में।
- कंपनी इनकॉर्पोशन को ई-फाइल के लिए।
- कंपनी सेक्रेटरी, चार्टर्ड एकॉउंटेट्स और कॉस्ट एकॉउंटेट द्वारा E-Attestation के लिए।
- गवर्मेन्ट टेंडर की ई-फाइल के लिए।
- ट्रेडमार्क और कॉपीराइट एप्लीकेशन की ई-फाइल करने के लिए।
Digital Signature के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बाद भी IT act के तहत इसका उपयोग वसीयत, डिवोर्स पेपर, लीज पेपर इत्यादि पर मान्य नहीं है।
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डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट के प्रकार (Types of Digital Signature Certificate in Hindi)
डिजिटल सिग्नेचर तीन वर्गों में बांटा गया है। सभी के अलग-अलग कार्य है। यदि आप Digital Signature का उपयोग करते है तो आपको यह भी अवश्य पता होना चाहिए कि कौनसा सिग्नेचर किस काम आता है। आइये जानते है कि यह कौन-कौन से होते है और किस-किस काम में आते है?
Class 1
क्लास 1 के डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग निजी या व्यक्तिगत कार्यों के लिए किया जाता है। यह धारक की ईमेल आइडेंटिफिकेशन को प्रमाणित करता है। इसमें कम मूल्य वाले लेनदेनों के लिए किया जाता है, इसलिए इसमें पहचान के सबूत की कोई खास जरूरत नहीं होती है।
Class 2
क्लास 2 डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग विभिन्न सरकारी संस्थानों में किया जाता है। जैसे – आयकर विभाग में आयकर रिटर्न के लिए, मंत्रालय और कॉरपोरेट आदि विभागों में दस्तावेज फाइल करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है
Class 3
क्लास 3 Digital Signature Certificate (DSC) सीधे सर्टिफाइड ऑथेरिटी (CA) द्वारा जारी किया जाता है। यह ऑर्थेटिसिटी के हाई लेवल को इंडीकेट करता है। इसमें आवेदनकर्ता पंजीकरण प्राधिकरण समक्ष खुद पेश होकर अपनी पहचान साबित करता है, इसलिए यह क्लास 1 और क्लास 2 दोनों के मुकाबले अधिक सुरक्षित होता है। डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग सेवा से सम्बंधित सरकारी विभागों में ई-टेंडरिंग या ई-नीलामी के लिए किया जाता है, जैसे – रेलवे, बैंक, बिजली विभाग, सड़क परिवाहन प्राधिकरण आदि।
इस प्रकार के DSC को Electronic commerce एवं ट्रेडिंग में पहचान स्थापित के उद्देश्य से उपयोग में लाया जाता है। DSC का यह प्रकार ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन में भी उपयोग में लाया जा सकता है।
Digital Signature कैसे बनाये?
भारत में आप किसी भी मान्य Certificate Authority (CA) से Digital Signature Certificate प्राप्त कर सकते हैं। भारत में Digital Signature Issue करने वाली ऐसी कई Certificate Authority हैं, जिन्हें इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के तहत भारत सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त है।
इसमें CDAC, Safe Scrypt, Emudhra, N Code Capricorn आदि शामिल है। डिजिटल सिग्नेचर बनवाने के लिए निश्चित शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। इसे बनवाने में एक सप्ताह तक का समय लग सकता है। इस सर्टिफिकेट की वैधता केवल एक या दो साल के लिए होती है। वैधता समाप्त होने पर इसे वापस रीन्यू करवाना पड़ता है।
डिजिटल सिग्नेचर बनवाने के लिये आवश्यक डॉक्यूमेंट क्या हैं ?
डिजिटल सिग्नेचर बनवाने के लिये कुछ आवश्यक डॉक्यूमेंट जो आपको CA आफिस में जमा करने होते है, बिना इन दस्तावेजों के आप डिजिटल सिग्नेचर बनवा सकते हैं। यह डॉक्यूमेंट निम्न है-
- PAN Card (Personal Account Number)
- कोई भी एक Address proof की फ़ोटो कॉपी ( इसमें राशन कार्ड, बिजली बिल, पानी बिल या पासपोर्ट हो सकता है)
- स्वयं की 4 पासपोर्ट साइज फ़ोटो जो स्वप्रमाणित (Self Attested) हो।
डिजिटल सिग्नेचर को रजिस्टर कैसे करें?
यदि आप अपना डिजिटल सिग्नेचर ऑनलाइन रजिस्टर करना चाहते है, तो आप घर बैठे भी बड़ी आसानी से इसका रजिस्ट्रेशन करवा सकते है। हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि डिजिटल सिग्नेचर के रजिस्ट्रेशन के लिए आपको कौन-कौनसे डॉक्यूमेंट की आवश्यकता पड़ती है। डिजिटल सिग्नेचर का
रजिस्ट्रेशन कराने के लिए स्टेप्स आपको नीचे बताए गए हैं।
- सबसे पहले Income tax की ऑफिशियल वेबसाइट ओपन करें।
- रजिस्टर्ड पैन व पासवर्ड से लॉग इन (Log In) करें।
- मेन मीनू पर क्लिक करें और प्रोफाइल सेटिंग्स में जाए।
- अब रजिस्टर डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट पर क्लिक करें।
- लैंडिंग पेज पर दिए गए लिंक से डीएससी मैनेजमेंट यूटीलिटी को डाउनलोड कर ले।
- जिप फोल्डर से अलग करके डीएससी मैनेजमेंट यूटीलिटी को ओपेन करें।
- फिर डिजिटल सिग्नेटर का इस्तेमाल करते हुए दूसरे टैब ‘रजिस्टर/रिसेट पासवर्ड’ में जाएं।
- कम्प्यूटर/लैपटॉप के यूएसबी पोर्ट में डीएससी यूएसबी टोकन लगाएं।
- ई-फाइलिंग में पंजीकृत यूजर आईडी और पैन नंबर इंटर करें।
- डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट के प्रकार को सेलेक्ट करें और सिग्नेचर फाइल जनरेट करें।
- दोबारा ई-फाइलिंग पोर्टल में जाएं और रजिस्टर डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट के पेज पर हाल ही में जनरेट की गई सिग्नेचर फाइल को अटैच करें।
- लास्ट में Submit पर क्लिक कर दें।
इस प्रकार आपके DSC का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। यह आयकर रिटर्न के वैरीफिकेशन की प्रक्रिया का यह पहला हिस्सा था। जब आपका रजिस्ट्रेशन हो जाएगा तो आपको रजिस्टर्ड ईमेल आईडी पर एक कन्फर्मेशन ईमेल प्राप्त होगा।
एक बार DSC का रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद आपको आईटीआर को वैरीफाई करना होता है। आईटीआर को वैरीफाई करने के लिए आपको नीचे बताए गए स्टेप्स फॉलो करने होंगे।
- इसके लिए सबसे पहले ई-फाइलिंग पोर्टल से नवीनतम डीएससी मैनेजमेंट यूटीलिटी को डाउनलोड करें।
- फिर जिप फोल्डर से अलग कर यूटीलिटी को ओपन करें।
- अब तीसरे टैब अपलोड एक्सएमएल को सेलेक्ट करें और एक्सेल या जावा रिटर्न फाइलिंग यूटीलिटी से जनरेट की गई एक्सएमएल फाइल को ब्राउज करें। लेकिन अगर रिटर्न ऑनलाइन ई-फाइलिंग एकाउंट से तैयार किया गया हो, तो चौथे टैब ‘सब्मिट आईटीआर/फार्म ऑनलाइन’ पर क्लिक करें।
- DSC (यूएसबी टोकन) के टाइप को चुने और सिग्नेचर फाइल को जनरेट करें।
- फिर ई-फाइलिंग वेबसाइट पर दोबारा जाएं और आईटीआर एक्सएमएल फाइल को अपलोड करते समय डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट के रेडियो बटन को चुने।
- ई-फाइलिंग के समय एक्सएमएल फाइल के साथ Signature को अपलोड करें।
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Digital Signature के फायदे क्या हैं ?
- Digital Signature user के Private Keys के साथ लिंक होते हैं और इसे केवल वही इस्तमाल कर सकता है इस कारण यह आसानी पता लगाया जा सकता है कि इस document का असली मालिक कोन है?
- Digital Signature में एक भी single bit में कोई अंतर होता है, तो यह मन जाता है कि इस document के साथ छेड़छाड़ की गयी है और यह document भरोसा करने योग्य नहीं है।
- हाथों से करे हुए हस्ताक्षर की कई बार लोग नकल भी कर लेते हैं, लेकिन डिजिटल हस्ताक्षर की नकल करना अंसभव है। इस सुविधा का उपयोग करके आप अपने दस्तवेजो को नकल से बचा सकते हैं।
- डिजिटल सिग्नेचर करने हेतु प्राइवेट की(key) केवल उसके धारक को ही मालूम होती है। वह जिस भी दस्तावेज पर यह हस्ताक्षर करता है, यह हस्ताक्षर इस बात का प्रमाण होता है कि इसलिए उपभोक्ता अपने द्वारा डिजिटल साइन किये गए किसी भी दस्तावेज़ को भविष्य में झुठला नहीं सकता है कि वह उसके नहीं हैं।
- अगर किसी दस्तावेज पर डिजिटल हस्ताक्षर करे गये हैं, तो उस दस्तावेज की वैधता की जाँच बड़ी आसानी से कि जा सकती है कि वह दस्तावेज वैध है अथवा नहीं।
- Digital Signature का उपयोग करने से समय की बचत होती है। DSC धारक व्यक्ति को फिजिकल रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कभी-कभी डॉक्यूमेंट उपस्थित नहीं होते है तो उन्हें इधर से उधर पहुंचने में भी काफी समय लग जाता है, वही अगर यह काम डिजिटल होता है तो डॉक्यूमेंट की पीडीएफ फाइल Digital Signature कर दिया जाता है।
- Digital Signature उपयोग करने से धन बचत होती है। डॉक्यूमेंट की पीडीएफ पर सिग्नेचर कर देने से प्रिंटिंग का खर्चा भी बच जाता है, वहीं अगर फिजिकल रूप से सिग्नेचर किये जाते है तो डॉक्यूमेंट प्रिंट करवाना पड़ता है।
Digital Signature के बारे में अन्तिम राय
दोस्तों, अब आप जान ही गए होंगे कि Digital Signature Kya Hai साथ ही आपको यह भी पता चल गया होगा कि इसका उपयोग कहाँ और कैसे किया जा सकता है। जैसा की हमने पहले बताया Digital Signature फिजिकली ना करके डिजिटल माध्यम के द्वारा किया जाता है। व्यक्ति जिस दस्तावेज पर सिग्नेचर करता है, वह दस्तावेज भी डिजिटल रूप में ही उपलब्ध होते हैं।
डिजिटल तकनीक द्वारा किए जाने के कारण धारक के अलावा इसका उपयोग कोई अन्य व्यक्ति नही कर सकता है और अगर सिग्नेचर होने के बाद उससे कोई छेड़छाड़ की जाए या कोई भी बदलाव किया जाता है, तो वह बड़ी आसानी से इसका पता लगाया जा सकता है। सरल शब्दों में बोला जाए तो यह किसी दस्तावेज वैध और विश्वसनीय होने की गारण्टी है। इस कारण निजी और सरकारी दोनों ही तरह के कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है।
अगर आपके भी मन में यह सवाल आता हो कि Digital Signature कैसे बनाए तो आर्टिकल में ऊपर Digital Signature बनाने के चरण बताए गए है जिनकी मदद से आप अपने खुद के डिजिटल सिग्नेचर बना सकते है। आपको यह आर्टिकल Digital Signature in Hindi कैसा लगा कमेन्ट करके जरूर बताए। साथ ही इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें ताकि उन्हें भी ज्ञात हो कि Digital Signature का मतलब क्या होता है और Digital Signature कैसे करे।
Digital Signature से जुड़े सवाल-जवाब
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Digital Signature का दूसरा नाम क्या है?
Digital Signature को इल्क्ट्रॉनिक सिग्नेचर भी कहा जाता है।
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Digital Signature किस काम आते हैं?
डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल ऑनलाइन तरीके से कॉन्ट्रेक्ट या एग्रीमेन्ट भरने, इनकम टैक्स रिटर्न, GST रिटर्न और गवर्मेन्ट टेंडर ई-फाइल करने जैसे कई कामों के लिए किया जाता है।